Wednesday 6 February 2013

मेरी अभिलाषा 

नीले नीले अम्बर का साया सा कुछ पावन हू ! कुछ धुमिल हू  मै 
एक झोके में छा जाता हू ! एक झोके में खो जाता हू 

फूलो का हसीं गुच्छा हू मै महका महका मदहोशी सा 
आज खिला हू फिर कल मुरझाया हर पल ना रहा रोशन मेरा साया 

अपनी नई पहचान पे झूम झूम के इतराता 
हर एक हार पे एक दम अकेला हो जाता 

मासूमियत भरा एहसास हू मै 
नवजात शिशु सा एहसास हु मै 




बस एक अस्तित्व के खिलवाड़ में 
अपनी पहचान को खोता पाया 

तेज़ हवा का झोका हू मै  
शीतल मॊसम जिसने बनाया  
तपती गर्मी में मैने ही एहसासों को झुलसाया  

लहरों का वो तेज़ बहाव हू  
छूके पेरॊ  को जो गुजर जाता   

वो यादों का पुलिंदा हू  
बहती  लहरे जो बहा ले जाए 


नाम हू बस एक नाम हू मै  
उस रेत पे लिखा हुआ  

एक पल के लिए जीवीत हू 
दूजे पल मै नही रहा 

कुंठाओ भरे मन से सोचा न हो पाया अंकित पत्थर पे 
जो ना कभी  मिट पाता 
रेत पर ही सिमट गया !! मेरी पहचान मेरा साया 

                                                                                                                                   शिल्पा अमरया

2 comments:

  1. nice lines...

    why dont you write something full of life..

    tumhara saya hamesha tumhare sath hi hai...kahin nahi jayega :)

    jokes apart...beautiful poem

    :)

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  2. :) thnax for suggestion..
    i will sometime..:)
    stay blessed.
    keep visiting my blogs

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