Friday 9 May 2014

ख़ामोशी 

है क्या उसके दिल मे क्यो मै ना सुन पाउ 
उड़ रही झुरमुठ के पीछे 
कैसे आज़ादी मे पंख फैलाऊ 

है सोच एक  दरिया मेरा 
दूजे छोर खड़ा उसको पाउ 

मेरी यादों मे चलता है वो 
आँखें खोल बोझिल हो जाऊ 

सपनो मे है वो आता जाता 
रोकना चाहू तो रोक ना पाउ 

मेरी मुस्कान मे बस्ता है 
हर पल चाहके भी ना हॅंस पाउ 














ओस की बूंदों मे वो दिखता 
थाम ना चाहूँ थाम न पाउ 

बहती हवा संग आता है बहता 
क्यों आगोश मे भर ना  पाउ 

जितना भी सोच की पहुुँच बडाऊ 
बदलो से मै जा टकराऊ 

है क्या उसके दिल मे 
कैसे मै ना सुन पाउ !!

                                                                                                शिल्पा अमरया