Sunday 2 September 2012


यूही अच्छा लगता है 


कभी कभी कोई अनजाना अच्छा  लगता  है!
अंजना सफ़र जाना पहचाना सा लगता है!

यू  तो आसन नहीं होता गेरों को अपनाना 
पर उसका कहा आज़माना  अच्छा लगता है!

उसकी एक हँसी के लिए अपना जहाँ लुटाना अच्छा लगता है!
अपनी हर बात पर उसका मुस्कुराना अच्छा लगता है! 

ख्याल जो उसका ज़हन में आये
हर अफसाना सच्चा लगता है!

रूठी रातो को माना लो ये दिल उस के संग हँसता है!
रूठना अच्छा लगता है! लड़ना अच्छा लगता है!

बिन मनाये यूही उसका मान जाना  अच्छा लगता है!
उसकी ख़ुशी में खुश होकर जीना अच्छा लगता है! 

धूप  में अच्छा लगता  है! छाओ में भी अच्छा लगता  है!
उसका मुझे छूकर यू  गुज़र जाना अच्छा लगता है!

बहारो का आना
अच्छा लगता है महकाना अच्छा लगती  है! 
उसको इन बाहो में समेट लेना अच्छा लगता है!

वो प्यार अच्छा लगता है! दीदार अच्छा लगता है!
बिन बादल बरसात में भीग जाना अच्छा लगता है!

वो निगाहे अच्छी लगती है! वो नज़ारा अच्छा लगता है!
बिन बताये उसका वो समझाने का नज़रिया
अच्छा लगता है!
by
 हर साजिश अच्छी  लगती  है! हर बंदिश अच्छी लगती  है!
उसका मुझपर अनजाने में ह़क जताना अच्छा लगता है!

उसके जज़्बात अच्छे लगते है! उसका गुस्सा अच्छा लगता है!
उसके माथे को चूमकर चुप रहना
अच्छा लगता है!

मुस्कुराना अच्छा लगता है! हर साज़ नया सा लगता है!
दूर जाकर उसका यू पास आना अच्छा लगता है!

थामा हुआ हाथ अच्छा लगता है!
कंधे पे वो हाथ अच्छा लगता है!
 
उसके होने से ही यह इश्क इबादत जैसा लगता है!
राधा का घनश्याम जैसा लगता है!

सीता का राम जैसा लगता है!
उसकी आशिकी में ये दिल सूफियाना शाम जैसा लगता है!

 कभी कभी बेगाना भी अपना जैसा लगता है! 
अनजाना शहर भी जाना पहचाना सा लगता है! 

पर न गुलाल अच्छा लगता है!
न होली का रंग तन पे चड़ता है!

उसकी जुदाई डस ले तो!
दुलहन की डोली अस्थी सा लगता है!
 
कुदरत को भी मेरी हस्ती पे हसना अच्छा लगता है!
हर कश्ती को साहिल पे दम तोडना जो होता है!

क्यों मेरा प्यार जाताना उससे कशमकश लगता है!
फिर ना सावन अच्छा लगता है!

ना झूमना अच्छा लगता है!
तुम बिन तनहा इन भरे नैनो को
 
बेहना अच्छा लगता है! बहते जाना अच्छा लगता है!
तुम्हारे बगैर हर अपना बेगाना जैसा लगता है !

ख्वाहिशों का अपना आँगन सूना सूना सा लगता है !
अब  ना तारा  टीम टिमाता  है!  ना चंदा चांदनी लाता  है!

बस बेहना अच्छा लगता है! बेह जाना अच्छा लगता है!
वो सताना याद आता है! उस अपनेपन को जी तरसता है!

भरे नैनो को अकसर यू बह जाना ही क्यों होता है!
बस  यूही अच्छा लगता है! यूही अच्छा लगता है!

special thanks to biplab bisbas bhaiya...:)