ख़ामोशी
है क्या उसके दिल मे क्यो मै ना सुन पाउ
उड़ रही झुरमुठ के पीछे
कैसे आज़ादी मे पंख फैलाऊ
है सोच एक दरिया मेरा
दूजे छोर खड़ा उसको पाउ
मेरी यादों मे चलता है वो
आँखें खोल बोझिल हो जाऊ
सपनो मे है वो आता जाता
रोकना चाहू तो रोक ना पाउ
मेरी मुस्कान मे बस्ता है
हर पल चाहके भी ना हॅंस पाउ
ओस की बूंदों मे वो दिखता
थाम ना चाहूँ थाम न पाउ
बहती हवा संग आता है बहता
क्यों आगोश मे भर ना पाउ
जितना भी सोच की पहुुँच बडाऊ
बदलो से मै जा टकराऊ
है क्या उसके दिल मे
कैसे मै ना सुन पाउ !!
शिल्पा अमरया
Superb yaar
ReplyDeleteUr simply speechless
thanku.. :)
DeleteBest thing is that ur using the words which itself saying sumthing n they surely placed at best place so that meaning created by the line becomes intense. All the words which dont hear normally r inserted by u luks gudd
ReplyDeletei.e. jhurmuth,dooja,chor,bojhil,aagosh,
omygod.. Thats a keen observation.. Thank you so much.. I am over whelmed with your comment.. and will try to maintain this in next poem aswell..
DeleteThanks..
keep visiting..
Take good care!!