ख़ामोशी
है क्या उसके दिल मे क्यो मै ना सुन पाउ
उड़ रही झुरमुठ के पीछे
कैसे आज़ादी मे पंख फैलाऊ
है सोच एक दरिया मेरा
दूजे छोर खड़ा उसको पाउ
मेरी यादों मे चलता है वो
आँखें खोल बोझिल हो जाऊ
सपनो मे है वो आता जाता
रोकना चाहू तो रोक ना पाउ
मेरी मुस्कान मे बस्ता है
हर पल चाहके भी ना हॅंस पाउ
ओस की बूंदों मे वो दिखता
थाम ना चाहूँ थाम न पाउ
बहती हवा संग आता है बहता
क्यों आगोश मे भर ना पाउ
जितना भी सोच की पहुुँच बडाऊ
बदलो से मै जा टकराऊ
है क्या उसके दिल मे
कैसे मै ना सुन पाउ !!
शिल्पा अमरया